Thursday, March 21, 2013

होली पर हास्य की फुल्झादियाँ

महीनों से था इन्तजार
मुझे रंगीली होली का
करने को कपोलों प्रहार
किसी सांवली सलोनी का
मूक बन कर सोचते रहे
वो आएगी खेलने होली
कीचड मल के मेरे मुख पे
कब कब में चली गई
कर ना सके दीदार
उस सांवली सलोनी का ,
मजा किरकिरा हो गया
जब रंगदार होली का
छुटाने चले कीचड
तब हमको पता चला
कितना चिपकू था प्यार
सावली सलोनी शर्मीली चमेली का \

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