सालियाँ ,सलहज ,भाबियाँ
सब मुझसे चिपट गईं
रंग व गुलाल के बदले
लिपस्टिक और सिन्दूर
गालों पर रगड़ गयीं
बजाय कुछ पिलाने के
लोटा खाली कर गईं
सारी लस्सी ख़ुद पीकर
मुंह में निप्पल लगाकर हमारे
ख़ुद वहाँ से चली गईं
कार्नर को इजहार होली का ,
करके सबने एका
होली खेलने का
ले लिया ठेका
फाड़ दिए सब वस्त्र मेरे
बच्चा रहा केवल लंगोटा
खेल रहा होली ससुराल में
बनकर मैं
भैंसा बुग्गी का झोटा .
Tuesday, March 10, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)